◆◆◆मिलने की हो आस◆◆◆
सितंबर 15, 2018
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बुनता है मन रोज हजारों अहसास अलसाई सी आंखों में रोज जैसे कोई रख जाए ढेरों ख्वाब.
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सूरज रख जात्ता है हजारों रंग अंजुरी में चुग ने नही आती कोई चिडिया यूंही चलता रहता है परिसंवाद .
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कुछ टुकडे आसमान के रंगों के मिलते है तितलियों के पंखों में तितलियां सिमटती चित्रों में खौलती अपने न मिलने का राज .
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पुरानी सी हवेली लिपि पुती सी मायूसी खिंड़क्ती से कूद कर आती ताजी हवा ओ गुनगुनाती एल्बम. मिल जाय , जेसे कोई अपना खास
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हजारों चित्र समय के आगोश में पहचान खोते दूर उड़ता सा पाखी जेसे खो जाए क्षितिज में उड़ते उड़ते हो जाय दृष्टी से ओझल फिर न कभी मिलने की हो आस.
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